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बांग्ला नववर्ष की शुरुआत मुगलों ने नहीं, वीर बंगाली शासक 'शशांक' ने की : संस्कार भारती

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बांग्ला नववर्ष की शुरुआत

बांग्ला नववर्ष की शुरुआत आगामी 14 अप्रैल से होने जा रही है। यह दिन बंगाली समुदाय के लिए बड़े उत्सव और हर्ष का दिन होता है। हालांकि इसकी शुरुआत को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं जिसे दूर करने का बीड़ा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) से संबंधित सांस्कृतिक संस्था 'संस्कार भारती' की पश्चिम बंगाल इकाई ने उठाया है।
संगठन के राज्य सचिव तिलक सेनगुप्ता ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि 'बंगाब्द' शब्द के साथ इस बांग्ला नववर्ष की शुरुआत होती है। इतिहास को विकृत कर ऐसा बताया गया है कि अकबर ने इसकी शुरुआत की थी, लेकिन ऐसा नहीं है। पराक्रमी बंगाली हिंदू शासक 'शशांक' ने इसकी शुरुआत की थी। इसे मुगलों से जोड़कर जानबूझकर दुष्प्रचार किया गया है ताकि बंगाली समुदाय अपने ऐतिहासिक गौरव को भूलकर इस्लामिक ऐतिहासिक साजिशों में फंसा रहे। इसीलिए आगामी 14 अप्रैल को जिस दिन से बांग्ला नववर्ष की शुरुआत होगी, उस दिन से प्रचार प्रसार अभियान की शुरुआत होगी।
बताया कि इस मौके पर एक परिचर्चा सत्र का भी आयोजन किया गया है, जिसमें मशहूर शिक्षाविद् डॉक्टर स्वरूप प्रसाद घोष अतिथि के तौर पर शामिल होंगे। कोलकाता के सॉल्ट लेक में आयोजित इस चर्चा में इतिहास के विशेषज्ञों को आमंत्रित किया गया है। इसके बाद प्रत्येक क्षेत्र में इससे संबंधित प्रचार-प्रसार होगा। उन्होंने कहा कि बंगाली शासकों का इतिहास गौरवशाली रहा है, लेकिन उसे इतिहास से हटा दिया गया है। गौड़ाधिपति शशांक, भारत के इतिहास में ऐसे ही एक भूला हुआ हिन्दू नायक हैं।
मान्यताओं के अनुसार राजा शशांक ने कालक्रम में सूर्य सिद्धांत प्रणाली 'बंगाब्द' की शुरुआत की थी। 592 से 593 ईस्वी इस सौर आधारित कालक्रम की शुरुआत है। संभवतः उनका राज्याभिषेक इसी बंगाब्द की पहली बैसाख के पहले दिन हुआ था। उनका शासनकाल लगभग 590 से 625 ई. तक रहा। उनके शासनकाल की आधिकारिक भाषा बंगाली थी और राज धर्म हिंदू था। वह विशाल बंगाल के पहले अपराजित और एकमात्र शासक थे, इसलिए उनके राज्याभिषेक के दिन से बंगाली नववर्ष की शुरुआत मानी जाती है। इसका अकबर से कोई लेना देना नहीं है। शशांक धार्मिक और धार्मिक रूप से सहिष्णु थे। वह बंगाली विद्या में एक शानदार ज्योतिषी थे लेकिन इतिहास में उन्हें कहीं जगह नहीं दी गई है यह सोची समझी साजिश के तहत है ताकि बंगाली समुदाय अपने गौरव से दूर रहें।

AUTHOR :Parul Kumari

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