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महावीर खान दुर्घटना पर आधारित फिल्म मिशन रानीगंज देखने उमड़ी भीड़

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रानीगंज

रानीगंज।लगभग 34 वर्ष पुरानी घटना महावीर खान दुर्घटना पर आधारित फिल्म मिशन रानीगंज को लेकर एक बार रानीगंज फिर से चर्चा में आ गई है। लेकिन निराश किया रानीगंज अंचल के वासियों को।हालाकि फिल्म का प्रथम शो देखने के लिए आज सुबह 9:00 बजे से रानीगंज के अंजना सिनेमा हॉल में लोगों की भीड़ उमर परी रानीगंज चेंबर ऑफ कॉमर्स की ओर से प्रथम शो देखने का इंतजाम की गई थी।वर्ष 13 नवंबर 1989 की यह घटना है।जिसमे 125 शार्मिक खान में कार्यत थे। लेकिन अंततः 71 शार्मिक फसे रह गए थे। इसमें से 6 की मौत हो गई थी लेकिन 65 श्रमिकों को कैप्सूल के जरिए बाहर निकाला गया था। जिसमें तत्कालीन खान सुरक्षा अधिकारी एक फरिश्ता के रूप में सरदार जी एस गिल वहां पहुंचे और कैप्सूल में प्रवेश किए ।सभी खान श्रमिको को बाहर निकले थे। उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार भी दिया गया था।

रानीगंज चैंबर ऑफ़ कॉमर्स के अध्यक्ष अरुण भारतीय ने कहा कि हम लोग इस घटना से पूरी तरह से अवगत नहीं थे लेकिन इस फिल्म को देखकर जानकारी मिली। चेंबर के महासचिव मनोज केसरी ने कहा कि इस खान दुर्घटना के संदर्भ में मैंने बढ़ते कदम मौत के मुंह में तीन दिन पुस्तक विमल देव गुप्ता द्वारा रचित के माध्यम से जानकारी प्राप्त किया था लेकिन फिल्म के माध्यम से पूरा प्रसंग सामने दिखा। कनस्टोरिया एरिया के कर्मी मोईनाथ मंडल ने कहा कि यह फिल्म सिर्फ जीएस गिल को समर्पित करके बनाई गई है। अच्छा लगा लेकिन इस मिशन में कोल इंडिया के अधिकारी कर्मियों की अहम भूमिका थी इसे नजर अंदाज किया गया। समाजसेवी आर पी खेतान ने कहा कि पुरानी दिनों की कहानी सामने आ गई। काफी रोचक फिल्म बनाई गई है। पूरे भारतवर्ष में रानीगंज मिशन के माध्यम से रानीगंज को एक पहचान मिलेगी। सीए रूबी गढ़वाल ने कहीं की इस फिल्म के माध्यम से रानीगंज का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की जानकारी मिली। घटना के प्रत्यक्ष दर्शी लेखक पत्रकार विमल देव गुप्ता ने कहा कि इस घटना पर मिशन रानीगंज के माध्यम से बहुत ही रोचक आकषर्णीय फिल्म बनाकर प्रस्तुत किया गया है। वास्तव में राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त डॉक्टर जीएस गिल इस दुर्घटना के हीरो रहे लेकिन इस मिशन में कार्यरत सभी कर्मी, श्रमिक,ठेकेदार को मैंने देखा एक जुट होकर मिशन के लिए काम कर रहे थे । उन्हें सम्मान नहीं दी गई। फिल्म के निदेशक ने फिल्म को आकषर्णीय बनाने के लिए कहीं ना कहीं उन कोल इंडिया के कर्मियों को कटघरे में खड़ा किया गया है। नगर निगम के एमआईसी दिबेंदु भगत ने कहां की इस फिल्म के माध्यम से रानीगंज कोयलाचल का महत्व बढ़ेगा।

 

 

 

एक देश भक्त जांबाज की तरह

 मैंने इस घटना को कई पत्र पत्रिकाओं में लिखा था। मैंने अपनी पुस्तक संग्रह बढ़ते कदम "मौत के मुंह में तीन दिन" लेकिन इस रचना को उस दरमियांन प्रसिद्धि मिली थी लेकिन वह ऐतिहासिक घटना भी इतिहास बनकर रह गई। मिशन रानीगंज के माध्यम से ही सही फिल्म के साथ-साथ मेरी रचना भी प्रासंगिक हो गई है। अर्थात कवि की पंक्ति है

कौन कहता है कि बुने हुए ख्वाब सच्चे नहीं होते,

मंजिलें उन्हीं को नहीं मिलती जिनके इरादे अच्छे नहीं होते,

रूखी-सूखी रोटी और धक्के तो बहुत खाए हैं जिंदगी में

लेकिन आज देख रहा हूँ कि सफलता के फल कभी कच्चे नहीं होते।

 

13 नवंबर का वह काली सुबह, पूरे शहर में आतंक मच गया था। चारों तरफ से एक ही आवाज रानीगंज मे भयावह भू धसान हो रहा है। शहर का पश्चिमी इलाका राजपाड़ा , बादाम बागान रोड, वहीं महावीर कोलियरी का एक बड़ा तालाब सब भू धसान के चपेट में आ गया।देखते ही देखते रास्ता धसने की आवाज तो, कहीं तालाब सूखने के बीच महावीर कोलियरी खान के कर्मियों के परिजन प्रबंधन सभी आतंक में देखे गए। इस बीच खबर आई की खान के अंदर 125 श्रमिक फंसे हुए हैं। लेकिन इस सबके बीच श्रमिकों को बचाने के लिए प्रयास जारी हो गया। घटना चासनाला खान दुर्घटना की तरह हुई थी खान के अंदर दामोदर नदी का पानी का रिसाव शुरू हो गया था। लेकिन संवाद खुशी की थी कि श्रमिकों के साथ संपर्क स्थापित हो गई थी। खान के अंदर फंसे श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए प्रयास शुरू हो गया। तीन दिनों के अथक प्रयास ने रंग लाया। वर्तमान में नारायणकुरी के पास एक बोर होल के माध्यम से 71 श्रमिकों में से 65 श्रमिकों को कैप्सूल से निकाला गया। जो एक आविष्कार था। मैं भी तीन दिनों के इस घटनाक्रम के बीच प्रत्यक्षदर्शी के रूप में रहा। लगभग सुबह दो बजे एक एक फरिश्ता के रूप में सरदार जी एस गिल वहां पहुंचे और कैप्सूल में प्रवेश किया। एक देश भक्त जांबाज की तरह माला अर्पण, चंदन टीका लगाया गया। आस लगाए बैठे श्रमिकों के परिजनों को आश्वासन दिए। खान के अंदर प्रवेश कर गए। सुबह का लगभग 3:00 बजे जब एका एक एक श्रमिक शालिग्राम सिंह ऊपर आए। उन्हें सम्मानित किया गया। मातम की जगह पूरा क्षेत्र खुशियों में तब्दील हो गया । आज वह घटना गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में जाकर अंकित हो गई।

AUTHOR :Kajod Verma

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