बीएसएईयू यानी बाबा साहेब अंबेडकर एजुकेशन यूनिवर्सिटी में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति डॉ. सी.वी. आनंद बोस
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति डॉ. सी.वी. आनंद बोस ने कहा है कि भारत की शिक्षा प्रणाली को पश्चिमी दिशा के बजाय देशी संस्कृति से पोषित किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “यह प्रणाली यूरोसेंट्रिक के बजाय भारत केंद्रित होती जा रही है। यह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की मुख्य नीवों में से एक है।"
गुरुवार को बीएसएईयू यानी बाबा साहेब अंबेडकर एजुकेशन यूनिवर्सिटी में शिक्षकों और भावी शिक्षकों की सभा में संस्थान के कुलपति डॉ. सोमा बंद्योपाध्याय और कुछ गणमान्य लोगों की उपस्थिति में ''मीट द मेंटर'' कार्यक्रम का आयोजन हुआ।
नई शिक्षा नीति पर उनके विचारों के बारे में पूछे जाने पर, राज्यपाल ने कहा, "इसमें छात्रों को अपने अध्ययन के विषयों को चुनने का एक अभूतपूर्व अवसर है। कर्नाटक संगीत में रुचि रखने वाला कोई भी व्यक्ति क्वांटम फिजिक्स ले सकता है। शेक्सपियर के जन्म से बहुत पहले कालिदास ने अपनी काबिलियत साबित कर दी थी। चाणक्य का जन्म मैकियावेली से एक हजार साल पहले हुआ था। चाणक्य, कालिदास जैसे अतीत के महान भारतीयों को उचित महत्व दिया जाना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत में नालंदा, तक्षशिला जैसे प्राचीन परंपरा के शिक्षण संस्थान थे।"
चर्चा में राज्यपाल ने कहा, "शिक्षक की भूमिका एक उत्प्रेरक- ''परिवर्तनकारी'' की तरह होती है। छात्रों को सही रास्ता दिखाने के लिए हमें खुद को बदलना होगा।'
उनके शब्दों में, ''''केवल बीए, एमए पास करके पढ़ाना काफी नहीं है। शिक्षकों को सामाजिक जिम्मेदारी को ध्यान में रखना चाहिए। समाज में उनके लिए एक आकांक्षा है।
शिक्षा लगातार महंगी होती जा रही है। क्या निदान है? इस सवाल के जवाब में राज्यपाल ने कहा, ''''आर्थिक असमानता शिक्षा में बाधक नहीं होनी चाहिए। इसके लिए केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों को उचित उपाय करने चाहिए। नेल्सन मंडेला से लेकर महात्मा गांधी, अरस्तू से लेकर लेनिन तक- सभी ने शिक्षा की उपयोगिता के बारे में बात की है। इसलिए ''शिक्षा का अधिकार'' एक ज्वलंत वास्तविकता है।
राज्यपाल ने सभा में कहा, “शिक्षकों को उचित सम्मान दिया जाएगा। लेकिन याद रखें कि हम सभी के जीवन में हमारी मां सबसे बड़ी शिक्षक होती है। माँ को सदैव नमन। इसके साथ ही आचार्य बोस ने छात्रों को नियंत्रण में रखने के लिए दिमाग को ठंडा रखने की सलाह दी। बगल में बैठे कुलपति की ओर देखकर मुस्कराते हुए बोले, ''जरूरत पड़ी तो एक साल ठंडे पानी से नहाई। जरूरत पड़ी तो ठंडा पानी रखिए। नहीं तो राजभवन उसकी व्यवस्था करेगा।"
राज्यपाल ने छात्रों के उत्साह और सोच को भी महत्व दिया। कहा, "सेना में गोरखाओं का विशेष महत्व है। क्योंकि, वे बिना कोई प्रश्न पूछे उच्चाधिकारियों के निर्देशों का पालन करते हैं। लेकिन आगे बढ़ने के लिए इस निष्ठा को विजन और एक्शन के संतुलित संयोजन की जरूरत है। शिक्षा हमारी ''दृष्टि'' के लिए महत्वपूर्ण है। इस संदर्भ में राज्यपाल ने जॉन मिल्टन और स्वामी विवेकानंद के कथनों का उल्लेख किया। छात्रों के मन को समझने के अनुरोध के संबंध में उन्होंने शिक्षकों से कहा, "छात्रों को शिक्षकों या उनके माता-पिता का नकलची न बनाएं। उनके पास अपना दिमाग है"।
अपने स्वागत भाषण में कुलपति डॉ. सोमा बंद्योपाध्याय ने रवींद्रनाथ के विचारों को याद करते हुए कहा कि इस संस्थान में डॉ. बोस जैसे बहु-प्रतिभाशाली लोगों की उपस्थिति महत्वपूर्ण है। यह शिक्षक तैयार करने वाला आधुनिक भारत का दूसरा संस्थान है।