वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन ग्रुप की भविष्यवाणी
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन ग्रुप के तहत प्रमुख जलवायु वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किए गए रैपिड एट्रिब्यूशन एनालिसिस के अनुसार भारत में 30 गुना 'लू' के थपेड़े चल सकते हैं। यही नहीं कुछ सालों में ही तापमान 55 डिग्री सेल्सियस पहुंचने की आशंका जताई है।
इस पर चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के मौसम वैज्ञानिक डॉ. एस एन सुनील पाण्डेय का कहना है कि अर्बन प्लानिंग में पैसिव एवं एक्टिव कूलिंग विधियों के अपनाने से बढ़ते तापमान पर कुछ हद तक रोक लगाई जा सकती है।
उन्होंने बताया कि देश के कई हिस्सों में इन दिनों गर्मी से लोग बेहाल हैं। राजधानी दिल्ली, कानपुर मण्डल समेत उत्तर भारत के कई शहरों में गर्मी से राहत दिलाने के लिए पंखे, कूलर फेल हो रहे हैं और बिना एसी के तो एक पल गुजारना मुश्किल हो रहा है। यह हाल तब है, जब इन दिनों तापमान 40 से 44 डिग्री तक पहुंच जा रहा है। ऐसे में जरा सोचिए कि तब क्या स्थिति होगी, जब पारा 48 से 55 के बीच होगा। देश में लू के थपेड़े 30 गुना अधिक होंगे। जिस तरह से कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन हो रहा है और यह बढ़ता जा रहा है। इससे आशंका ये जताई जा रही है कि आने वाले वर्षों में राजधानी दिल्ली, कानपुर, लखनऊ समेत कई शहरों का औसत तापमान अभी की तुलना में 7 से 8 डिग्री और बढ़ सकता है।
ऐसी स्थिति में हमें अर्बन प्लानिंग में पैसिव एवं एक्टिव कूलिंग विधियों को अपनाने पर तेजी लाना चाहिये। इसके अलावा अर्बन प्लानिंग के दौरान घरों को कुछ इस तरह डिजाइन किया जाये कि उनके भीतर का तापमान नियंत्रित रह सके। जिससे एसी और दूसरे कूलिंग डिवाइस में होने वाली ऊर्जा की खपत कम होगी।
डॉ पांडेय के मुताबिक दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन की खपत कम करने पर जोर दिया जा रहा है। वह कहते हैं कि जिस तरह कार्बन फुटप्रिंट कम करने को लेकर अमीर और विकासशील देशों में समन्वय का अभाव है, वह संकट को जटिल बना सकता है। ग्रीन मोबेलिटी अर्थात गैर जीवाश्म ईंधन आधारित यातायात को प्रोत्साहित किया जा रहा है, लेकिन यह ट्रांजिशन भारत जैसे विकासशील देश के लिए चुनौतीपूर्ण है। बांग्लादेश और पर्यटन की इकोनॉमी पर केंद्रित थाईलैंड या दूसरे किसी देश की तुलना न्यायसंगत नहीं होगी।
डा० पांडेय कहते हैं कि जिस समय यह रिपोर्ट जारी हुई है, ऐसे समय में जी-7 की बैठकें जापान में हो रही हैं। इन देशों के पास 45 फीसदी कारोबार है। धरती को गरम करने में इनकी हिस्सेदारी लगभग 60 फीसदी से ऊपर है। लेकिन जी-7 देश जब ग्रीन इकोनॉमी के लिए जरूरी टेक्नोलॉजी और फाइनेंस की बात आती है तो वह मुंह छिपाते नजर आते हैं। भारत जी-7 देशों में आमंत्रित सदस्य के रूप में भाग ले रहा है। ऐसे में भारत को पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली को ठीक वैसी ही मान्यता दिलाने के लिए आगे आना चाहिए, जैसे योग और मिलेट्स को लेकर प्रयास किए गए है। यहां तक की जी-20 के मौजूदा आयोजन के मुख्य प्रस्ताव में लाइफ मिशन भारत की ओर से बड़ी देने के रूप में स्थापित होना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन ग्रुप के तहत प्रमुख जलवायु वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम ने रैपिड एट्रिब्यूशन एनालिसिस किया। इसके अनुसार दुनियाभर के हीटवेव हॉटस्पॉट्स में शुमार होने वाले इस क्षेत्र की हाई वल्नरेबिलिटी ने मौसम के असर को बढ़ा दिया और भारत दुनिया के उन देशों के साथ खड़ा होता दिख रहा है, जहां 55 डिग्री से अधिक तापमान पहुंच जाता है। इस रिपोर्ट ने 41 डिग्री सेल्सियस तापमान को खतरनाक श्रेणी में रखा है। जबकि 55 डिग्री सेल्सियस तापमान को अति घातक श्रेणी में बताया गया है।