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विदेशी शक्तियों के देश को अस्थिर करने के प्रयासों से जागरूक रहने की आवश्यकताः प्रो उपाध्याय

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भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो राकेश उपाध्याय

लोकतंत्र में सरकार व मीडिया रेलवे की दो लाइनों की तरह होते हैं, जो कभी मिलते नहीं हैं, बल्कि एक साथ आगे चलते हैं । लोकतंत्र के लिए दोनों बहुत आवश्यक है । सरकार अपना कार्य करती है तथा मीडिया को निडर हो कर लोक क्या चाहता है, उसे अवगत कराना चाहिए। ओडिया दैनिक निर्भय के 9वें वार्षिक उत्सव कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल भारतीय़ जन संचार संस्थान, नई दिल्ली के निदेशक तथा भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो राकेश उपाध्याय ने यह बात कही ।

प्रो. उपाध्याय ने कहा कि भारत में संचार की परंपरा हजारों सालों की है। आदि पत्रकार महर्षि नारद के समय से संचार की समृद्ध परंपरा भारत में रही है । उन्होंने कहा कि भारत के विभिन्न हिस्सों में जो लोक कला और संगीत के जरिये संचारित होता रहा है, उन सब में मूल एक ही तत्व है, भारत के लोक मानस में यह बसा हुआ है।

उन्होंने कहा कि वर्तमान में विदेशी शक्तियां मीडिया व सोशल मीडिया में ट्रोल आर्मी बना कर इसके जरिये देशों के विखंडन करने का प्रय़ास लगातार कर रही हैं । देशों को तोड़ने के लिए तथा देशों में अराजकता की स्थिति उत्पन्न करने के लिए रणनीतिक तौर पर ये शक्तियां लगातार कार्य कर रही है । विदेशों में ये विभाजनकारी शक्तियां इस रणनीति का प्रयोग कर काफी हद तक सफल भी हुई हैं । ऐसे में भारत के पत्रकार व मीडिया जगत के लोगों को इस बारे में सजग रहने की आवश्यकता है। उन्हें समाज में किसी प्रकार के बिखराव करने वाले समाचारों का प्रेषण कैसे न हो, इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ।

उन्होंने कहा कि कोई भी भारतीय भाषा क्षेत्रीय भाषा नहीं है बल्कि सभी भारतीय भाषाएं राष्ट्रीय हैं । भारत के मातृभाषाओं की पत्रकारिता का भविष्य उज्ज्वल है । नई शिक्षा नीति 2020 में मातृभाषाओं पर जोर दिया गया है, लेकिन समाज में कुछ लोग हैं जो इसका विरोध कर रहे हैं ।

कार्यक्रम में सम्मानीय अतिथि के रूप में गुवाहाटी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ज्योत्स्ना राउत ने असम व ओडिशा के सांस्कृतिक संबंधों के बारे में विस्तार से बताया । कार्यक्रम में दैनिक प्रमेय समाचार पत्र के संपादक गोपाल महापात्र ने पत्रकारिता की दशा दिशा पर अपनी बात रखी । समाचार पत्र के संपादक नवीन दास ने स्वागत भाषण दिया ।

AUTHOR :Parul Kumari

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