कैम्पा पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सीईओ सुभाष चंद्रा
कैम्पा पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सीईओ सुभाष चंद्रा ने एक कार्यशाला में पर्यावरण और भूमि पर विकास गतिविधियों के हानिकारक प्रभावों को रोकने के लिए कृषि,वानिकी,बागवानी, कृषि वानिकी और प्रकृति संरक्षण क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाकर भूमिक्षरण को रोका जा सकता है।
आईसीएफआरई के सभागार में भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (आई.सी.एफ़.आर.ई.) देहरादून और इंटरनेशनल यूनियन ऑफ फॉरेस्ट रिसर्च ऑर्गेनाइजेशंस (आईयूएफआरओ) की ओर से संयुक्त रूप से लचीला परिदृश्य के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि सुभाष चंद्रा ने यह विचार रखे। इस दौरान उन्होंने पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन शैली के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से लाइफ मिशन पहल के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला।
चंद्रा ने विभिन्न हितधारकों जैसे सरकारों, नागरिकों, निजी क्षेत्र और स्थानीय समुदायों की समग्र प्रतिभागिता सुनिश्चित करने, और जलवायु,स्मार्ट वानिकी और कृषि प्रथाओं का उपयोग करने का सुझाव दिया। जिससे भूमिक्षरण को रोका जा सके। इसके साथ ही कैम्पा, राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, हरित भारत मिशन और नगर वन योजना जैसी विभिन्न योजनाओं के तहत मंत्रालय के चल रहे प्रयासों को भी साझा किया।
आई.सी.एफ़.आर.ई. महानिदेशक अरुण सिंह रावत ने सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा के लक्ष्यों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वन और भूमि उत्पादकता वृद्धि योजनाओं के निष्पादन में मंत्रालय के साथ मिलकर काम किया जा रहा है। इनमें भारत के विभिन्न भागों में कोलमाइन ओवरबर्डन, लाइम स्टोन माइन्स, सोडिक मिट्टी, क्षरित पहाड़ियों, जलभराव क्षेत्र और रेगिस्तानी टीलों की बहाली के लिए समग्र पैकेज का विकास, वानिकी के माध्यम से 13 प्रमुख नदियों के पुनरुद्धार के लिए डीपीआर तैयार करना है। मंत्रालय के हरित कौशल विकास कार्यक्रम का क्रियान्वयन,129 लौह और मैंगनीज अयस्क खानों के सुधार और पुनर्वास की योजना शामिल हैं।
उन्होंने विशेष रूप से सतत भूमि प्रबंधन पर आईसीएफआरई उत्कृष्टता केंद्र में चल रहे प्रयासों का भी उल्लेख किया। उन्होंने प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन शिक्षा में पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिए बिम्सटेक क्षेत्र में देशों के बीच सहयोग बढ़ाने में आईयूएफआरओ के साथ आईसीएफ आरई के सक्रिय सहयोग का भी जिक्र किया।
प्रोग्राम लीडर यूएस फ़ॉरेस्ट सर्विस डॉ. जॉन ए. पैरोटा ने अध्यक्ष के रूप में आईयूएफआरओ का प्रतिनिधित्व करते हुए कहा कि इसके उद्देश्यों और दीर्घकालीन जीविका और मानव कल्याण के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों को बताया। इसके साथ ही क्षरित हुई भूमि की बहाली के लिए सामूहिक रूप से काम करने के लिए दुनिया भर में अंतर क्षेत्रीय सहयोग और सहयोग पर जोर दिया।
सत्र के पश्चात, प्रतिभागियों द्वारा मसूरी हिल्स और राजाजी नेशनल पार्क का भ्रमण किया गया। जहां उन्हें चूना पत्थर खनन क्षेत्रों और क्षतिग्रस्त पहाड़ी क्षेत्रों की बहाली के लिए विकसित किये गए तरीकों और कई अलग-अलग क्षेत्रों की वनस्पति और वन प्रकार और वन्य जीवन प्रबंधन के बारे में जानकारी दी गई।
प्रभारी निदेशक आईसीएफआरई, एफआरआई देहरादून आर.के. डोगरा ने विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों, वैज्ञानिकों और सभी उपस्थित लोगों का स्वागत करते हुए संगोष्ठी की जानकारी दी।
इस संगोष्ठी में भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रिया, कनाडा, जर्मनी, नीदरलैंड, नेपाल, चीन, अर्जेंटीना, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार, इथियोपिया, मलावी, चीन और श्रीलंका से कुल मिलाकर 225 वानिकी, कृषि, प्रकृति संरक्षण, जल संसाधन प्रबंधन और खनन के क्षेत्रों के विशेषज्ञ और वैज्ञानिक शामिल हुए हैं। ये क्षरित हुई भूमि और वनों की बहाली के मुद्दों और इसके लिए अंतरक्षेत्रीय नीति और योजना समन्वय बढ़ाने पर चर्चा के साथ प्रयासों और अनुभवों को साझा करेंगे। संगोष्ठी के आयोजन सचिव डॉ.दिनेश कुमार की ओर से प्रस्तावित धन्यवाद प्रस्ताव के साथ सत्र का समापन हुआ। सत्र का संचालन विजया रात्रे ने किया।