एंटोन एंड्रीव का नाम अब अनंतानन्द नाथ हो गया
भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में आस्था रखने वाले रूस के नागरिक और क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एंटोन एंड्रीव ने गुरुवार को तंत्र दीक्षा लेने के बाद हिन्दू धर्म को अपना लिया। हिन्दू धर्म में एंटोन एंड्रीव का नाम अब अनंतानन्द नाथ हो गया है।
शिवाला स्थित वाग्योग चेतना पीठम में धार्मिक अनुष्ठान के बीच पं.आशापति शास्त्री के आचार्यत्व में पं. सत्यम शास्त्री और पं. विनीत शास्त्री ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच एंटोन एंड्रीव को तंत्र दीक्षा दी। दीक्षा की प्रक्रिया पूरी होने और सनातन धर्म स्वीकार करने के बाद अनंतानंद नाथ (एंटोन)ने पत्रकारों को बताया कि रूस-यूक्रेन के युद्ध से काफी व्यथित है। अपने देश में शांति के लिए मां तारा से प्रार्थना करेंगे। उन्होंने बताया कि वे परमात्मा की शरण में जाने के लिए दीक्षा ली है।
गुरू प.आशापति के सानिध्य में कुंडलिनी साधना की सम्पूर्ण 10 कक्षाएं पूर्ण कीं। उन्होंने बताया कि रूस में उन्हें बनारस के वागीश शास्त्री के बारे में पता चला और कुंडलिनी जागृत करने की इच्छा हुई। कुछ कक्षाएं भी लीं, लेकिन पूरा नहीं कर पाए। कई व्यवधान के बाद वर्ष 2022 में गुरु वागीश शास्त्री का निधन हो गया था। 10 दिनों के ध्यान के दौरान मुझे जो अनुभूति हुई है, उसको शब्दों में बयां नहीं कर सकते। सनातन धर्म और काशी की मिट्टी की शक्ति है, जिसने मेरी दीक्षा को पूर्ण किया। हिंदू रीति-रिवाज से नामकरण के साथ ही एंटोन का गोत्र भी कश्यप कर दिया गया है।
पंडित आशापति शास्त्री ने बताया कि दुनिया में यूक्रेन और रूस से दीक्षा लेने वालों की संख्या बढ़ रही है। गुरु वागीश शास्त्री और मेरे द्वारा अब तक 80 देशों के 15 हजार विदेशी शिष्यों को दीक्षा दी गई है। दीक्षा लेने की परम्परा 1980 में शुरू की गई थी। तब से लगातार यह काम चल रहा है।
पंडित आशापति बताते हैं कि ईश्वर छह महीने में या 2 साल बाद भी दर्शन दे सकते हैं। इसके लिए गुरु दीक्षा दी जाती है। कुंडलिनी जागृत करना सबसे जरूरी है। कोई साल भर में कर पाता है, कोई 10 दिन में तो कोई कभी भी नहीं। कुंडलिनी जागृत कर लेने वाले को ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि वह दुनिया की कोई भी वस्तु प्राप्त कर सकता है। ऐसा नहीं है। यह केवल आध्यात्मिक शक्ति की अनुभूति के लिए है।