शुक्रवार को भोपाल में 7वें अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि मानवता के दुख के कारण का बोध कराना और उस दुख को दूर करने का मार्ग दिखाना, पूर्व के मानववाद की विशेषता है, जो आज के युग में और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। धर्म-धम्म की अवधारणा भारतीय चेतना का मूल स्वर रही है। हमारी परंपरा में कहा गया है कि जो सबको धारण करता है, वह धर्म है। धर्म की आधारशिला पर ही पूरी मानवता टिकी हुई है।
राष्ट्रपति शुक्रवार को भोपाल में 7वें अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि राग और द्वेष से मुक्त होकर मैत्री, करूणा और अहिंसा की भावना से व्यक्ति और समाज का विकास करना, पूर्व के मानववाद का प्रमुख संदेश रहा है। नैतिकता पर आधारित व्यक्तिगत आचरण और समाज व्यवस्था पूर्व के मानववाद का ही व्यावहारिक रूप है। नैतिकता पर आधारित इस व्यवस्था को बचाए रखना और मजबूत करना हर व्यक्ति का कर्तव्य माना गया है।
उन्होंने कहा कि धर्म-धम्म की हमारी परंपरा में "सर्वे भवंतु सुखिन:" की प्रार्थना हमारे जीवन का हिस्सा रही है। यही पूर्व के मानववाद का सार-तत्व है और आज के युग की सबसे बड़ी जरूरत भी है। यह सम्मेलन मानवता की एक बड़ी जरूरत को पूरा करने की दिशा में सार्थक प्रयास है। यही कामना है कि समस्त विश्व समुदाय पूर्व के मानववाद से लाभान्वित हो।
श्रद्धेय कुशाभऊ ठाकरे जी का स्मरण
राष्ट्रपति मुर्मू ने धर्म-धम्म सम्मेलन के लिए राज्य सरकार, साँची विश्वविद्यालय और इंडिया फाउंडेशन की सराहना की। उन्होंने श्रद्धेय कुशाभऊ ठाकरे का स्मरण करते हुए कहा कि इस सभागार को कुशाभाऊ ठाकरे का नाम दिया गया है। जन-सेवा के कार्य में धर्म-धम्म के आदर्शों के अनुरूप नि:स्वार्थ और संपूर्ण समर्पण का उदाहरण प्रस्तुत करने वाले ठाकरे जी का स्मरण सभी को नैतिकता, धर्म और सेवाभाव से जोड़ता है।
धर्म-धम्म के भाव को स्पष्टत: प्रदर्शित करते हैं हमारे राष्ट्रीय प्रतीक
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश की परंपरा में समाज व्यवस्था और राजनैतिक कार्य-कलापों में प्राचीन काल से ही धर्म को केन्द्रीय स्थान प्राप्त है। स्वाधीनता के बाद हमने जो लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई उस पर धर्म-धम्म का गहरा प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। हमारे राष्ट्रीय प्रतीकों से यह स्पष्टत: प्रदर्शित होता है। अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन में विभिन्न देशों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं, जो धर्म-धम्म के विचार की वैश्विक अपील का प्रतीक है।
प्रारंभ में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राज्यपाल मंगूभाई पटेल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की उपस्थिति में सम्मेलन का उद्घाटन किया। पुलिस बैंड द्वारा राष्ट्र-गान की धुन का वादन किया गया। साँची विश्वविद्यालय के गीत की विजुअल प्रस्तुति भी हुई। राष्ट्रपति मुर्मू को मुख्यमंत्री चौहान ने अंगवस्त्रम्, प्रतीक-चिन्ह शंकराचार्य जी का चित्र और एकात्म धाम पर केन्द्रित पुस्तक भेंट की। राज्यपाल पटेल को आर्गेनाइजिंग कमेटी के को-चेयर प्रो. एस.आर. भट्ट ने प्रतीक-चिन्ह तथा अंगवस्त्रम् भेंट किया। मुख्यमंत्री चौहान को साँची बौद्ध विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. नीरजा गुप्ता द्वारा प्रतीक-चिन्ह भेंट किया गया।
राष्ट्रपति ने किया "द पेनारोमा ऑफ इण्डियन फिलॉस्फर्स एण्ड थिंकर्स" पुस्तक का विमोचन
राष्ट्रपति ने प्रो. एसआर भट्ट द्वारा लिखित पुस्तक "द पेनारोमा ऑफ इण्डियन फिलॉस्फर्स एण्ड थिंकर्स" का विमोचन किया। कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में "नए युग में मानववाद का सिद्धांत" विषय पर हुए सम्मेलन में पांच देशों के मंत्री, 15 देशों के विद्वान, चिंतक और शोधार्थी सम्मिलित हो रहे हैं। धर्म-धम्म के वैश्विक विचारों को एक मंच प्रदान करने वाला यह सम्मेलन पांच मार्च तक चलेगा।
उद्घाटन-सत्र में शामिल हुए भूटान और श्रीलंका के मंत्री तथा इंडोनेशिया के उप राज्यपाल
कार्यक्रम में प्रदेश की संस्कृति मंत्री ऊषा ठाकुर, भूटान के गृह और सांस्कृतिक मामलों के मंत्री उगेन दोरजी, श्रीलंका के संस्कृति औऱ धार्मिक मामलों के मंत्री विदुर विक्रमनायके, श्रीलंका के प्रो. राहुल अनुनायक थेरा, इंडोनेशिया के उप राज्यपाल प्रो. डॉ. आईआर तोजोकोर्डो ओका अर्थ अरदाना सुकवती उपस्थित थे। पाँच मार्च तक चलने वाले 7वें अंतरराष्ट्रीय धर्म -धम्म सम्मेलन में विभिन्न देशों में सांस्कृतिक सामंजस्य और अन्य विषयों पर चर्चा के लिए भारत सहित इंडोनेशिया, श्रीलंका, नेपाल और भूटान के संस्कृति मंत्री भाग ले रहे हैं। सम्मेलन में ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, स्पेन, मॉरीशस, दक्षिण कोरिया, नेपाल, वियतनाम, थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका, मंगोलिया और भूटान के विद्वान और शोधार्थी भी सहभागिता कर रहे हैं।