राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शनिवार को कहा कि जिस ज्ञान में मेरा-तेरा का भेद नहीं वही पवित्र है, उसी ज्ञान की उपासना हम करते हैं। दुनिया को कुछ देना चाहिए इसलिए अपने राष्ट्र का उद्भव हुआ। विश्व के कल्याण की इच्छा रखने वाले हमारे पूर्वजों की तपस्या से हमारे राष्ट्र का निर्माण हुआ है। हमारा प्रयोजन विश्व का कल्याण है। डॉ. भागवत ने अहमदाबाद में ज्ञानसागर के 1051 ग्रंथों के लोकार्पण समारोह में यह बातें कही।
पुनरुत्थान विद्यापीठ की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में संघ प्रमुख डॉ. भागवत ने कहा कि भारतीयों को भारतीय ज्ञान परम्परा का ज्ञान हो जाए इसीलिए जो आवश्यक कदम उठाने पड़ते हैं, उसमें से यह एक कदम है। वैसे भारतीय ज्ञान परम्परा के अथाह सागर में यह बहुत छोटी बात है, लेकिन हमारी क्षमता के अनुसार यह एक बड़ा कदम है। उन्होंने कहा कि ज्ञान को समझने का अपना-अपना तरीका है। सबको सुख देने वाला क्या है, इसकी खोज दुनिया में जबसे विचार उत्पन्न हुआ, तबसे चल रही है। ज्ञान मनुष्य को सभी अज्ञानता से मुक्त करता है। यह ज्ञान बाहर नहीं है, उसको अंदर देखना पड़ता है, तब मिलता है। जो दिख रहा है वह नित्य परिवर्तनशील है, यह वाह्य ज्ञान है, जिसे हम विज्ञान कहते हैं, लेकिन केवल विज्ञान को मानने वाला यह कहता है कि बाकी सब गलत है, यह अहंकार है और अंदर के ज्ञान की शुरुआत इस अहंकार को मारकर होती है।
उन्होंने कहा कि सत्य का पूर्ण ज्ञान अपने अहम के परे जाने पर ही होता है, इसलिए अहं सापेक्ष और अहं निरपेक्ष ऐसे दो प्रकार के ज्ञान को जानने के तरीके हैं। वास्तव में इसमें संघर्ष नहीं है, लेकिन अहं निरपेक्ष ज्ञान के तरीके वाले इसको समझते हैं और अहं सापेक्ष ज्ञान वाले इसको नहीं समझते इसलिए बखेड़ा खड़ा करते हैं। दुनिया में पिछले दो हजार साल में यही हुआ।
डॉ. भागवत ने कहा कि विज्ञान ने अंधश्रद्धाओं से मनुष्य को मुक्त किया। मनुष्यों को कहा कि प्रयोग करो फिर मानो। इसके चलते मनुष्य का जीवन सुखमय हो गया, लेकिन मनुष्य ने साधनों को शक्ति के रूप में इस्तेमाल किया, जिसके परिणाम आज हम देख रहे हैं। कोरोना काल में सृष्टि को कैसे सुखमय रख सकते हैं, उसकी अनुभूति सबको हुई। वास्तव में दुनिया नया तरीका चाहती है और देने का काम हमारा है। हमारे राष्ट्र के अस्तित्व का प्रयोजन यही है। प्रवृत्ति जहां से बनती है वहां का ज्ञान यह वास्तविकता है और वह अंदर से बनती है।
उन्होंने कहा कि हमारी दृष्टि धर्म की दृष्टि है, जो सबको जोड़ती है, सबको साथ चलाती है। वो सबको सुख देती है। अस्तित्व की एकता का सत्य हमारे पूर्वजों ने जाना उससे परिपूर्ण एकात्म ज्ञान की दृष्टि उनको मिली और इसीलिए उनको यह भी अनुभव हो गया कि सम्पूर्ण विश्व अपना परिवार है, एक परिवार है। जिस ज्ञान में, मेरा-तेरा का भेद नहीं, यही पवित्र है, उस ज्ञान की उपासना हम करते हैं। विश्व के कल्याण की इच्छा रखने वाले हमारे पूर्वजों की तपस्या से हमारे राष्ट्र का निर्माण हुआ है। हमारा प्रयोजन विश्व का कल्याण है।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में ज्ञानसागर महाप्रकल्प की अध्यक्ष इंदुमती ने प्रकल्प के विषय में जानकारी दी। राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका शांतक्का विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। कार्यक्रम के अध्यक्ष परमात्मानन्द ने भी आशीर्वचन दिए।