कुकुर देव
भारत में ऐसे कई मंदिर मौजूद हैं जिनके बारे में कई कहानियां चलती है और उनकी परंपरा और रहस्य से भरी कहानी आप को अचरज में डाल देती है आज हम आपको छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में मौजूद एक ऐसे अनोखे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जहां कुत्तों की पूजा की जाती है इस प्राचीन मंदिर को कुकुर देव मंदिर के नाम से जाना जाता है यह मंदिर किस देवता का नहीं बल्कि कुत्तों को भी समर्पित है।
क्या है मान्यता
दर्शन को लेकर यहां मान्यता है कि कुकुर देव मंदिर में कुत्ते के साथ शिवलिंग की पूजा होती है मान्यता है कि कुकुर देव का दर्शन करने से कुकुर खांसी दूर हो जाती है और उसका डर नहीं रहता ना ही कुत्ते के काटने का खतरा रहता है। इतना ही नहीं यहां नेता से लेकर कई बड़े लोग भी इस मंदिर में आकर अपना सिर झुकाते हैं इस मंदिर में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी पहुंचे थे जब उन्होंने कुकुर देव मंदिर में बेजुबान जानवरों की वफादारी के आगे सर झुकाया था।
इस ऐतिहासिक मंदिर की कहानी काफी प्रचलित है कहा जाता है कि गर्भ गृह में जलधारी योनि पीठ पर शिवलिंग प्रतिस्थापित है और ठीक उसी के पास स्वामी भक्त कुत्ते की प्रतिमा भी स्थापित है जिसमें लोगों के अटूट आस्था है।कुकुर देव मंदिर वास्तव में एक स्मारक है कुकुर देव मंदिर का स्मारक है जहां एक वफादार कुत्ते की याद में से बनाया गया था और इससे मंदिर का रूप दिया गया और उसी से लोगों की आस्था जुड़ी है इस मंदिर के पीछे एक बंजारे उससे पालतू कुत्ते की कहानी जुड़ी है।
क्या है मंदिर की कहानी
मान्यता है कि सर्दियों में पहले का बंजारा अपने कुत्ते और परिवार के साथ यहां आए थे गांव में एक बार अकाल पड़ गया तो बंजारा ने गांव के साहूकार से कर्ज लिया लेकिन वह कर्ज वापस नहीं कर पाया ऐसे में उसने अपना वफादार कुत्ता साहिब कार के पास गिरवी रख दिया और वहां से चला गया।
कुछ समय के बाद साहूकार के यहां चोरी हो गई लेकिन कुत्ते को उस लूटे गए माल के बारे में पता चल गया और वह साहूकार को बहा ले गया कुत्ते की बताई जगह पर साहूकार ने गड्ढा खोदा तो उसको सारा माल मिल गया इससे खुश होकर कुत्ते के गले में पर्ची लगाकर उसे उसके वास्तविक मालिक के पास भेज दिया गया।
कहा जाता है कि जैसे ही कुत्ता बंजारे के पास पहुंचा तो बंजारे ने सोचा कि साहूकार के पास से भाग कर आ गया उसने गुस्से में कुत्ते को जमकर पीटा इसके बाद जब उसने गले में पर्ची देखी तो उसे पछतावा हुआ उसके बाद उसने उस कुत्ते को वहीं दफना दिया और वहां स्मारक बनवा दिया जिसके बाद से वह मंदिर बन गया है।यहां नवरात्रि महाशिवरात्रि पर भक्तों की भीड़ बढ़ती है महाशिवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा होती है और यहां मेला भी लगता है।