भगवान श्री कृष्ण
भगवान श्री कृष्ण भगवान विष्णु के 8वें अवतार कहे जाते है लेकिन भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु कैसे हुई क्या आप इसके बारे में जानते है क्या आपके सोचा की भगवान की मृत्यु क्यों हुई थी और उनकी मृत्यु के बाद क्या हुआ था हम आपको इस तमाम सवालों के जवाब आज देने वाले है जिसेक बारे में आपको पता होना चाहिए। भगवान श्री कृष्ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व मथुरा में हुआ था हालांकि उनका बचपन वृंदावन, बरसाना, नंदगाव गोकुल और द्वाराक में बीता था बतायाजाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद श्री कृष्ण ने द्वारका पर 36 वर्ष तकरा किया और जिसके बाद उन्होंने अपने देह त्याग दिया था उस समय उनकी आयु 125 वर्ष थी दरअसल उनकी मृत्यु के पीछे की वजह 2श्राप थे आइए जानते है क्या थे वो श्राप।
बताया जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद जब दुर्योधन और उसके सभी भाइयों का अंत हो गया तो उनकी माता गांधारी को क्रोध आया और अपने बेटे के शव पर शोक व्यकत करते हुए रणभूमि में गांधारी ने श्रीकृष्ण को 36 वर्षों के बाद मृत्यु का श्राप दिया ये सुनकर पांडव चकित रह गए लेकिन श्री कृष्ण ने मुस्कुराते हुए इस अभिशाप को स्वीकार किया इसके बाद ठीक 36 वर्षों के बाद उनकी मृत्यु हो गई और उनकी मृत्यु एक शिकारी के हाथों हुई।
भागवत पुराण में बताया गया है कि एक बार श्री कृषण के पुत्र सांबा ने शरारत करने की सोची और सांबा अपने मित्रों के साथ एक स्त्री का वेश धारण कर ऋषि मुनियों से मिलने गया स्त्री के वेश में सांबा ने ऋषियों से कहा कि वह गर्भवती है यदुवंश कुमारों की इस शरारत से ऋषियों ने क्रोथ में आकर श्राप दे दिया तुम एक ऐसे लोहे के तीर को जम्म दोगी जो तुम्हारे पूरे कुल का सर्वनाश कर देगा। इस श्राप को सुनकर सांबा डर गया और तुरंत सारी घटना उग्रसेन को बताई श्राप से छुटकारा पाने के लिए उग्रसेन ने सांबो को कहा कि तीर का चूर्ण बनाकर प्रभास नदी मे प्रवाहित कर दो जिसके बाद सांबा ने वहीं किया उसके बाद उग्रसेन ने राज्य में ये आदेश पारित कर दिया कि यादव राज्य में कोई भी किसी प्रकार की नशीली सामग्री इस्तेमाल नहीं करे
ये घटना द्वारका के लिए कई अशुभ संकेत लाई थी जिसमें सुदर्शक चक्र बलराम के हल और श्रीकृष्ण के शंख रथ का अदृश्य हो जाना शामिल था फिर अपराध और पाप बढ़ने लगे और एक दिन गर वासी मदिरा के नशे में चूर हो गए आपस में ही लड़ने लगे। एक दिन भगावन श्री कृष्ण पीपल के पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे तब जरा नाम के एक बहेलिए ने भगवान कृष्ण को हरिण समझकर उन पर तीन का प्रहार किया जिसके बाद श्री कृष्ण ने अपने देह त्याग दिए. दरअसल ये तीर उसी लोहे के तीर का अंश था जिसे सांबा ने उग्रसेन के कहनेपरचूर्ण बनाकर नही में प्रवाहित किया था ।