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चिता की राख से आरती करने पर खुश होते हैं देवो के देव महादेव 

The King Mahakal of Ujjain is as special as the tradition of worshipping him.

चिता की राख से आरती करने पर खुश होते हैं देवो के देव महादेव 

आप सभी ने उज्जैन ज्योतिर्लिंग के बारे में जरूर सुना होगा, इससे जुडी कहानियां और रहस्यमयी राज पुरे भारत में प्रसिद्ध है।उज्जैन के राजा महाकाल जितने खास है उतनी ही खास है उन्हे पूजने की परंपरा. महाकाल की तड़के सुबह की पूजा तांत्रिक परंपरा से की जाती है. कहा जाता है कि जब तक चिता की ताज़ी राख से महाकाल की भस्म आरती नहीं होती, तब तक महाकाल खुश नहीं होते हैं.

उज्जैन महाकालेश्वर के मंदिर में 1 दिन में 6 बार आरती की जाती है। सबसे पहले सुबह 3:30 बजे भस्म आरती की जाती है, जो की 2 से 2.5 घंटे तक आरती होती है। इसके बाद सुबह 7 बजे ददद्योदक आरती, जिसमे दूध- दही- चावल का भोग लगाया जाता है। तीसरी आरती होती है महाभोग आरती, जो की सुबह 10 बजे की जाती है। शाम को 5 बजे पूजन किया जाता है, इस तरह से सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक सतत जल धरा चलती रहती है यानी की अभिषेक होता रहता है और शाम 5 बजे की आरती में जलाभिषेक कलश को उतार दिया जाता है और सूखा श्रृंगार किया जाता है। पांचवी आरती संध्या आरती की जाती है और उसके बाद अंत में छट्टी आर

उज्जैन के राजा महाकाल के मंदिर में आयोजित होनेवाले दैनिक अनुष्ठानों में दिन का पहला अनुष्ठान होता है भस्म आरती का. जो कि भगवान शिव को जगाने, उनका श्रृंगार करने और उनकी सबसे पहली आरती करने के लिए किया जाता है.

इस आरती की खासियत यह है कि आरती हर रोज़ सुबह चार बजे, श्मशान घाट से लाई गई ताजी चिता की राख से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पर छिड़काव करके की जाती है.सबसे पहले सुबह चार बजे भगवान का जलाभिषेक किया जाता है. उसके बाद श्रृंगार किया जाता है और ज्योतिर्लिंग को चिता के भस्म से सराबोर कर दिया जाता है.वैसे तो शास्त्रों में चिता के भस्म को अपवित्र माना जाता है

AUTHOR :KRISHNA SINGH

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